Правда і діло з Соналі Бхабхі, частина 1

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इतवर का दिन था, आज मुझे मेरे वर्परोम होम से भी चुट्टी थी।

तो उपर अपने कमरे में लेटे लेटे, मैं कुछ सोच ही रहा था कि यका यक मुझे नीचे से माँ की आवज है।

समीर, समीर, जड़ा नीचे आओ, हम मंबई के लिए निकल रहे हैं।

शाम छि बज़ी की फ्लाइट है, मैंने रिस्ट वाच को देखते देखते माँ को जवाब दिया, हाँ मैं आ रहा हूँ।

मैं नीचे पहुचा, तो देखा कि माँ और पापा दोनों भी अपने बैक्स ले जाने के लिए तयार थे।

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मैं किसी रिष्टिदार की शादी के लिए मुंबई निकल रहे थे।

समीर, चरा जल्दी गाड़ी से हमें एरपोर्ट छोड़ दो, फ्लाइट के समय तक हमें पोचना होगा।

एक तो शाम के चार बज़े है, इस समय ट्रैपिक भी बहुत ज्यादा होता है, पापा ने कार की चाबी मुझे थमाते हुए कहा।

मैंने जल्दी से गाड़ी पार्किंग से निकली और बैकस गाड़ी में रखने लगा। तबी मा सोनली भाबी को आवाज देने लगी। जल्दी सोनली भाबी भी निचे आई।

सब तयारी हो गई आंटी जी, सोनली भाबी ने मा से हस्ते हस्ते पूचा।

हाँ बेटा हम निकल रहे हैं तो जड़ा घर का खयाल रखना और समीर को खाने के लिए भी कुछ बना देना। अब पाछे दिन तक अब घर नहीं है तो जड़ा समाल लेना। माने चिंता के सौर में सोनली भाबी से कहा।

दरसल सोनली भाबी हमारे घर में उपर पेंगेस के तूर पर रह रही थी। उनकी एक चार साल की चोटी बेटी भी थी, मदु, वो दोने ही उपर रहते थे। एसा नहीं था कि सोनली भाबी के पती नहीं थे, लेकिन वो अपने किसी नीजी काम के खातिर उन्हीं के गाउं म

पर था। माने सोनली भाबी से विदा लिया और मैं उन्हें चोड़ने एरपोर्ट निकल गया। जैसे कि पापा ने कहा था,

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